केदारनाथ आपदा की वो काली रात, लोगों के जेहन में आज भी ताजा हैं वो खौफनाक मंजर

Kedarnath Disaster in 2013: हाल ही में बहुत कुछ बदल गया है. लोगों ने साथ मिलकर उस भयानक आपदा का सामना किया है. आज से 10 साल पहले, इसी दिन 16-17 जून को, उस स्वर्णिम यात्रा के वक्त जब लोग अपने परिवार के साथ आश्रित रास्तों से जा रहे थे, मेरी आंखों के सामने वह प्रकोप फिर से खड़ा हो जाता है. उन दिनों, जिनमें जीवन की सावधानियों से भरी जंगली सड़कों पर चलते हुए, कुछ लोग अपने परिवार के साथ बाबा केदार के दर्शन करने गए थे. लेकिन उनमें से किसी के पूरे परिवार का अंत हो गया, वही अकेला लौट गया. 2013 में, अचानक बादल फट गए और कई गांव उन्मूलन के झटके से उजड़ गए. ऐसा लग रहा था जैसे भगवान शिव की तीसरी नेत्र खुल गई हो और सब कुछ भस्म हो रहा हो.

इससे संबंधित विभिन्न लोगों ने कई कहानियां सुनाई हैं. एक केंद्रीय मंत्री, अश्विनी चौबे, भी उन परिवारों में शामिल थे जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया था. उन्हें भी केदारनाथ यात्रा की याद आकर हृदयघाती से उबलते हुए संघर्ष करना पड़ता है. उनकी आंखें खामोशी के साथ आंसू बहाने लगती हैं और उनका गला भारी हो जाता है. घटना के दस साल बीत जाने के बावजूद, उनके घाव आज भी नहीं भरे हैं और उन्हें लगता है कि वे कभी भरेंगे भी नहीं. ऐसा सोचकर उनकी आत्मा कांप उठती है. आपने भी परिवार सहित बाबा के दर्शन करने के लिए यात्रा की है. वहां पर जल-प्रलय हर ओर से आगे बढ़ रहा है और लोग कागज़ के साथ बह रहे हैं. आप अपने प्रियजनों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. तभी आपके परिवार के कुछ सदस्य पानी की गति में बह जाते हैं. इस अनिश्चित घटना के बावजूद, जो भी हो, कितने भी साल बीत जाएं, वह घटना हमेशा लोगों के दिलों में बनी रहेगी.

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रूप कांप जाती है आज भी वो दिन याद कर के…

पानी का वह रौद्र रूप, जब मैं इसे लिख रहा हूं, तो मेरे शरीर पर रोंगटे खड़े हो रहे हैं. पहले बादल फटे, उसके बाद एक भयंकर बारिश आई, और फिर भूस्खलन ने सब कुछ तबाह कर दिया. जो भी उन लहरों के सामने आया, वह मिटता चला गया. चाहे वह पुल हो, पत्थर हो, सड़कें हों, इमारतें हों या फिर पहाड़ी-वनस्पतियों कुछ भी हो… सब बहता जा रहा था. वह दृश्य, जिसके सामने लोग आए थे, उनमें से कुछ लोग अभी भी जीवित हैं. वे सब संकट में जा चुके हैं. वे अपने दिमाग में उस भयानक रात को भूल नहीं पा रहे हैं. हजारों तीर्थयात्रियों की मौत हो गई है। कई लोग लापता हैं. 10 साल बाद भी हमें उनकी प्रतीक्षा है, शायद उनको अभी भी जीवित मिलें. सुना है लोग 50 साल तक भी मिल सकते हैं. हमें भी उम्मीद है कि हमें उनकी लाश मिल जाएगी.

क्या कुछ हुआ है बदलाव केदार धाम में?

केदारनाथ धाम, जिसकी ऊंचाई लगभग 12000 फीट (3600 मीटर) है, गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है. यहां बहुत ठंड मौसम रहता है. जून महीने में भी तापमान -3 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. यहां के लोग ठंड के आदी हो जाते हैं. मतलब यहां के पुजारी भी बर्फ पर नंगे पांव चलते हैं. कई लोग घंटों तक बर्फ पर बैठकर जप करते रहते हैं. यहां पर प्रकाश बहुत कम होता है. हालांकि, रूम हीटर से ही काम चलता है. यहां पूरे दिन श्रद्धालुओं का आना-जाना रहता है. पुराने मार्ग को तबाहकारी बाढ़ ने पूरी तरह से मिटा दिया था. नया मार्ग पहले की तुलना में और कठिन हो गया है. यहां ठहरने के लिए भी आपको काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है.

बहुत कुछ बदला, और कुछ है बाकी

एक कमरे की कीमत 5000 से 8000 तक होती है. हालांकि, अधिकांश तीर्थयात्री मंदाकिनी नदी के किनारे बने तंबू में रात बिताते हैं. यह एक बेहद खतरनाक प्रयास होता है. इसी प्रकार, 2013 में इस स्थान का पानी तबाही का मुख्य कारण था, जो हड़कम्प जैसा प्रभाव डालता है. पूरे शहर को तंबू में आवश्यकता पड़ी. इसके अलावा, कुछ अवैध रूप से निर्मित कमरे भी बनाए गए हैं. तीर्थयात्रियों को इनमें ठहरने के लिए 500 से 1000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. बाढ़ के समय, इसी वजह से सबसे अधिक मौतें होती थीं. हालांकि, अब सभी बदल गया है. बहुत सुधार हुए हैं और अभी भी कई बातें बदलने के लिए शेष हैं. प्रशासन और सरकार लोगों की सुविधा और सुरक्षा के लिए अधिक व्यवस्थाएं कर सकते हैं.

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