एमपी में किसकी बनेगी सरकार? मतदान के बाद जीत के आकलन पर जुटे भाजपा और कांग्रेस पार्टी, एग्जिट पोल में भाजपा को फायदा
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राहुल गाँधी के लिए बुरी खबर, इस बार मिल रही बस इतनी सीटें, पिछले बार के आकड़ों तक भी पहुँचने में हुए असफल
आज हम बात कर रहे हैं एमपी चुनाव की जहां भाजपा और काँग्रेस के बीच टक्कर चल रही है किसी सीट पर भाजपा आगे चल रही है तो किसी पर काँग्रेस, लेकिन आज हम आपको बतयएंगे कि आखिर कौन सी पार्टी सत्ता में पूरी मजबूती से आ रही है। आज हम करेंगे वोटिंग पर चर्चा और चुनाव में किसका होगा फायदा? क्या एमपी में फिर लौटेगी वही सरकार या बदलेगी सत्ता? अबकी बार कमल या पंजा,राज़ करने की अब किसकी बारी? चुनावी मौसम के बीच राजनीति के दौर जारी है। भाजपा हो या कांग्रेस सभी राजनीतिक दल चुनावी रण में अपनी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मध्य प्रदेश हो या फिर राजस्थान राजनीति के वार पलटवार जारी है। इसी बीच मध्यप्रदेश में एक दौर की वोटिंग हो गई है। इस वोटिंग में मध्यप्रदेश में हुए पिछले 66 साल की वोटिंग का रिकॉर्ड तोड़ दिया। है। एक दौर में 12 सीटों पर हुए मतदान का वोटिंग परसेंट 80% के करीब जा पहुंचा, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने वोटिंग परिषद को लेकर ट्वीट किया है, उन्होंने लिखा है कि एमपी में 77.15% मतदान हुआ है तो आईये जानते हैं कि आखिर वोटिंग परसेंट बढ़ने का क्या मायना है और इससे किस दल को क्या फायदा हो सकता है। पूरी दुनिया में जब भी कहीं ज्यादा वोटिंग होती है तो चुनाव स्टेशन इसको अलग अलग तरीके से देखते हैं। चुनाव में ज्यादा और कम वोटिंग को वो एक खास तरीके से देखते हैं। अगर बड़ी या कम हुई वोटिंग को चुनाव लड़ रही पार्टियों के सिलसिले में देखें तो इसका मतलब अलग होता है। मोटे तौर पर मानते हैं की ज्यादा वोटिंग का मतलब ऐन्टी इनकंबेंसी फैक्टर हावी है। यानी सत्ता में मौजूदा पार्टी से नाराजगी वाले वोट ज्यादा पड़े हैं। मध्य प्रदेश में बढ़े मतदान प्रतिशत के बाद कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसका देहात क्षेत्रों में कांग्रेस को ज्यादा लाभ हो सकता है तो वहीं शहरी क्षेत्रों में बीजेपी को फायदा मिलने का अनुमान है। इस तरह से मध्य प्रदेश के अलग अलग रीज़न में वोटिंग हुई है और ग्राउंड से जिस तरह का राजनीतिक माहौल निकल कर सामने आया है। उसके हिसाब से बीजेपी की सीटें ओपिनियन पोल में बताई गई सीटों की संख्या से अधिक आने का अनुमान लगाया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि देहात क्षेत्र में जातिगत गोलाबंदी हुई है। ग्वालियर चंबल इलाके में इस बार के परिणाम चौंका सकते हैं। इस बार ग्वालियर चंबल संभाग में बीजेपी की सीटें बढ़ सकती है। पिछले चुनाव में बीजेपी को इस रीज़न में सिर्फ सात सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार ये आंकड़ा 12 के पार भी जा सकता है। हालांकि, इस रीज़न में कांग्रेस को ही अपर हैंड रहेगा, लेकिन महाकौशल मालवा बिंद, भोपाल रीज़न बुंदेलखंड में करीबी मुकाबला भी हुआ है। इसके कारण ओपिनियन पोल सर्वे की तुलना में बीजेपी को अधिक सीटें मिलती नजर आ रही है। बहरहाल, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि कांग्रेस इन इलाकों में अपनी बढ़त बना सकती है। राजनीति की इस जंग में जीत का ताज किसके सिर पर सजेगा ये बात तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे। पर बढ़े वोटिंग परसेंटेज नहीं यहाँ एक तरफ सत्ताधारी दलों को वापस लौटने की उम्मीद भी है तो वहीं दूसरी और विपक्ष को सत्ता में आने की उम्मीद भी है। फिलहाल ये देखना होगा कि जनता किसे सत्ताधीश चुनती है।