“इंदिरा इज इंडिया-इंडिया इज इंदिरा”…जानिए यह नारा पूर्व PM के लिए क्यों लगा था?

Former PM Indira Gandhi: विपक्ष ऊंचाईयों पर था, जबकि गुजरात में जनता मोर्चे की सफलता और हाईकोर्ट के इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसले ने उन्हें और भी उत्साहित किया. कांग्रेस के समर्थन में लोगों की संख्या बढ़ रही थी और विपक्षी नेताओं ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग करने के लिए बाहर उतरने का ठान लिया था. दबाव बनाने के लिए, विपक्ष ने राष्ट्रपति भवन पर धरना प्रारंभ कर दिया था.

जून महीने में देशभर में तेज गर्मी के बावजूद, विपक्षी दलों ने देशव्यापी सभाएं, प्रदर्शन और उत्साहपूर्ण आंदोलनों का आयोजन किया. सभी लोग उम्मीद कर रहे थे कि इंदिरा गांधी अपने अगले कदम की ओर बढ़ेंगी. कुछ लोग अनिश्चय की चिंता से डरे हुए थे. हालांकि, सत्ता और विपक्ष के बीच, विवादित मुद्दों पर तीखी टक्कर जारी थी.

साल 1971 की दुर्गा 1975 में असुरक्षित क्यों हुई?

जोय की विजय के बाद जब इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में सफलता हासिल की, तब अटल बिहारी वाजपेयी ने देवी दुर्गा के रूप में उन्हें नवाजा था. हालांकि, उस समय तक अटल जी ने खुद को डरा हुआ और असुरक्षित महसूस करते हुए पाया था. वह इस बात को इंकार करने लगे थे कि वे कभी इंदिरा गांधी की प्रशंसा में ऐसा कुछ कहा था.

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लोकसभा में द्वितीय तिहाई बहुमत और पार्टी के दबदबे के बावजूद, विपक्ष ने कोर्ट के फैसलों और सड़क पर आंदोलन के बावजूद इंदिरा गांधी के सामने दो ही विकल्प रखे थे – पदत्याग या महत्वपूर्ण परिवर्तन. विपक्ष की ओर से उन्हें समर्थन जुटाने या अधिकारी भीड़ को प्रभावित करने के लिए यह काफी नहीं था. उनके कैबिनेट सहयोगी सामने तो उन्हें नमस्कार कर रहे थे, लेकिन उनकी वफादारी के प्रति संदेह बरकरार रहा.

संजय की चौकड़ी सब पर भारी

इस कठिनाई भरे समय में, इंदिरा गांधी की निर्भरता उनके छोटे बेटे संजय गांधी के प्रति बढ़ती गई. इसके साथ ही, नेता के प्रति निष्ठा प्रदर्शन के पैमाने भी बदल गए. मां की लड़ाई में जकड़े हुए संकट के समय, बेटे ने कमान संभाली. सत्ता के हाथ में ताकत बढ़ गई और अधिकार में वृद्धि हुई. लोगों को अब समझ में आने लगा कि संजय की इच्छा पूरी होगी. इसलिए, संजय के दरबार को सजाने का समय आ गया.

इंदिरा के पुराने सहयोगी अब किनारे पर खड़े होने लगे. उन्होंने हवा के रुख को समझने और अपने आप को उसके साथ मेल खाने में माहिरता दिखाई. वे कुछ नए दरबारों में अपनी जगह बना ली. एक नये पहलू की उभरती हुई. हरियाणा के बंसीलाल ने कहा कि विपक्षियों को हमारे राज्य की जेलों में डाल दो. मैं सभी को दुरुस्त कर दूंगा.

विद्याचरण शुक्ला भी उनमें से एक थे, जिन्हें गोयबल्स ने संबोधित किया था, और जिन्होंने आगामी दिनों में सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में बनकर सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया के सामर्थ्य को प्रमुखता दिया. गृह मंत्री पी. सी. सेठी को किनारे रखकर, उनके राज्यमंत्री ओम मेहता के प्रति भी धूम थी. आने वाले दिनों में संजय के नजदीकी सहयोगी अंबिका सोनी और रुखसाना सुल्ताना भी शामिल थे.

इंदिरा तेरी सुबह की जय

इस उत्कटता भरे दौर में, कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ दरबार की निकटता हासिल करने के लिए प्रयासरत थे. उन्हें संविधान सभा के सदस्य होने पर गर्व था. वे एक प्रतिष्ठित साहित्यकार भी थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 83वें अध्यक्ष के रूप में भी कार्यरत थे. हालांकि, उन्हें फिर भी चिंता बनी रहती थी. कोर्ट के फैसले के बाद, इंदिरा को कुछ दिनों के लिए इस्तीफा देने की सलाह देने वालों की सूची में उनका भी नाम शामिल था.

बेशक, इसे इंदिरा और संजय दोनों ने नापसंद किया. बरुआ ने वापसी के लिए बहुत बड़ा खेल खेला. उन्होंने नारा दिया, “इंदिरा इज इंडिया – इंडिया इज इंदिरा.” यह नारा वफादारों ने तत्परता से लपेट लिया और फिर उनकी आवाज दूर-दराज तक गूंजी. बरुआ को हंसाने वालों और चाटुकारों लोगों की उन्हें कोई फिक्र नहीं थी. वे उनके पास ही ठहरे थे. अगले कुछ दिनों में वोट क्लब की सभा उनका इंतजार कर रही थी, जहां उन्हें यह पढ़ना था:

इंदिरा तेरी सुबह की जय,
तेरी शाम की जय,
तेरे काम की जय,
तेरे नाम की जय.”

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