उड़ीसा की पुरी में हर साल जगन्नाथ जी की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है. यह रथ यात्रा हिंदू पंचांग के आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है. जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं और भगवान जगन्नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान होते हैं जो तीन भव्य रथों में सवार होते हैं.
इस साल यह यात्रा 7 जुलाई 2024 को निकल जाएगी जिसे 4 बजकर 26 मिनट पर शुरू किया जाएगा. जो 08 जुलाई की सुबह 04 बजकर 59 मिनट पर खत्म होगी. लेकिन क्या आपको पता हैं कि यात्रा शुरू होने के पहले जगत के पालनहार भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं. आईए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा को-:
भगवान जगन्नाथ के 15 दिन बीमार होने के पीछे प्रचलित पौराणिक कथाओं में से एक है भगवान जगन्नाथ के परम भक्त माधव की कथा. बताया जाता है कि माधव भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे. जो हर दिन भगवान की सेवा और पूजा पूरी श्रद्धा से किया करता था लेकिन एक दिन वह अचानक से बीमार हो गया और वह भगवान जगन्नाथ की पूजा करने नहीं पहुंच सका. जिसको लेकर भगवान जगन्नाथ को अपने परम भक्त माधव की चिंता हुई और वह उससे मिलने उसके घर जा पहुंचे. उन्होंने देखा कि उनका भक्त बीमार पड़ा है इसके बाद भगवान ने उनकी खूब मन से सेवा की तभी माधव ने पूछा कि प्रभु आप मेरी सेवा क्यों कर रहे हैं आप चाहे तो मुझे ठीक भी कर सकते हैं. इस पर भगवान ने कहा कि मैं कुछ भी कर लूं लेकिन तुम्हारे पूर्व जन्मों के कष्टों को तो तुम्हें ही भोगना पड़ेगा.
भगवान जगन्नाथ से अपने परम भक्त माधव की पीड़ा देखी नहीं गई और उसकी 15 दिन की बची हुई बीमारी को भगवान ने खुद पर ले लिया और वह स्वयं बीमार हो गए हैं. इसके बाद उन्हें तरह-तरह की दवाइयां खिलाई गई. 15 दिन बाद ही वह स्वस्थ हो गए. मान्यता है कि इसी के चलते हर साल रथ यात्रा से पहले 15 दिन के लिए जगतपालक भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ते हैं. उनकी देखरेख के लिए बड़े-बड़े डॉक्टरों को भी बुलाया जाता है और उन्हें कई तरह की औषधियां का भोग भी लगाया जाता है. उसे ही उनके भक्तों में वितरित किया जाता है.
वहीं उनकी रथ यात्रा के पीछे की मान्यता यह है कि हर साल आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते थे और 7 दिनों के बाद वह वापस आते थे. इस परंपरा को उनके भक्त हर साल बड़े श्रद्धापूर्वक निभाते हैं.