फेफड़ों का कैंसर जो धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में सबसे ज्यादा पाया जाता है। देखा जाए तो लंग कैंसर से पीड़ित 80% फ़ीसदी मरीज धूम्रपान का सेवन करते हैं। देश के हेल्थ डाटा के अनुसार 5.9% मामले लंग कैंसर के आते हैं। साल 2021 में लंगस कैंसर से मरने वालों का आंकड़ा 8.1% रहा था। हेल्थ स्टडी में एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। फेफड़ों से होने वाले कैंसर में सबसे अधिक मरने वालों में उन व्यक्तियों की संख्या है जो धूम्रपान नहीं करते फिर भी लंग कैंसर का शिकार होते हैं। धूम्रपान हीं करने वालों में लंगस कैंसर की समस्या बढ़ने के क्या कारण है।
लक्षण-
लगातार खांसी रहती है, वजन घटना, खांसी के समय खून आना, छाती में दर्द रहता है, सर दर्द होना और हड्डियों का चटकना और सांस लेने में कठिनाई।
कारण
पर्यावरण प्रदूषण जिसे सेकंड हैंड स्मोकिंग भी कहा जाता है। प्रमुख कारणों में से यह भी एक। इसमें पर्यावरण में मिली निकोटिन और कार्सिनोजेनि भी प्रभावित करते हैं।
कार्यस्थल-
अक्सर कुछ मजदूर वर्ग केमिकल फैक्ट्रियों में काम करते हैं। जहां पर नॉनस्मोकर्स व्यक्तियों को लंग कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। यूरेनियम और डीजल निकासी की जगह पर काम करने वाले भी इस बीमारी का शिकार होते हैं।
पर्यावरण में स्थित रेडॉन-
पर्यावरण में आसानी से उपलब्ध है। 238 यूरेनियम के सड़ने से जो बनता है। उसे रेडॉन कहते हैं। लंग कैंसर में सबसे अधिक नॉनस्मोकर पर्यावरण में फैले इस प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
जेनेटिक-
फैमिली हिस्ट्री का भी जानना बेहद आवश्यक है। अगर आपके पूर्वजों में किसी को भी लंग्स कैंसर की समस्या रही है या उनकी मृत्यु हुई है ,तो अधिक संभावना है कि कि आने वाली पीढ़ी भी फेफड़े के कैंसर से पीड़ित हो सकती है।