Operation Blue Star की बरसी पर स्वर्ण मंदिर में लगे खालिस्तानी नारे, जानें किसे होगा फायदा?

Operation Blue star: वर्ष 1984 में पंजाब में एक ऐसी घटना घटित हुई, जिसने समूचे भारतवर्ष को हिलाकर रख दिया. इस घटना को नाम दिया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार, जोकि 1 से 6 जून के दिन वर्ष 1984 में घटित हुआ था. इस मामले में अकाली दल की ये मांग थी कि पंजाब (Punjab) को अलग अधिकार दिए जाएं. लेकिन जब ऐसा संभव नहीं हो सका, तब पंजाब राज्य में खालिस्तानी समर्थकों ने अलगाववादियों के साथ मिलकर अमृतसर (Amritsar) के स्वर्ण मंदिर (Golden temple) को घेरकर भारत सरकार को चुनौती दे डाली. जिसके बाद करीब 1 हफ्ते तक चली सैन्य कार्रवाई के दौरान ऑपरेशन ब्लू स्टार में 83 भारतीय सैनिक शहीद समेत 493 लोगों की मौत हो गई, इस ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान 249 लोगों को गंभीर रूप से चोटें आई थी.

उस दौरान भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation blue star) के दौरान पंजाब की सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन (President rule) लागू किया गया था. ऐसे में आज इस ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39 वीं वर्षगांठ के मौके पर भी खालिस्तानी समर्थकों द्वारा स्वर्ण मंदिर में नारेबाजी हुई. इस दौरान समर्थकों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) के दौरान भीड़ को उकसाने वाले व्यक्ति भिंडरवाले के भी समर्थन में पोस्टर प्रदर्शन किया. 1984 में हुई इस घटना को दुबारा होने से रोकने के लिए कई कोशिशें की जा चुकी हैं, लेकिन अब तक इस आंदोलन पर पूर्णतया लगाम नहीं लग पाई है. अब भी देश और दुनिया में कई जगहों पर खालिस्तानियों (Khalistani) द्वारा इस घटना को दोबारा दोहराने का प्रयास किया जा रहा है.

कौन कर रहा है वापस खालिस्तान को जागृत करने की कोशिश?

साल 1984 की घटना के बाद खालिस्तानी विवाद अब भी ठंडा नहीं पड़ा है. यही कारण है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं वर्षगांठ पर भी सिख समुदाय के लोगों से एकजुट होने की अपील की जा रही हैं. खालिस्तानी समर्थकों का कहना है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए सिखों की शहादत को बेकार नहीं जाने दिया जाएगा. आपको बता दें कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की घटना को दोबारा दोहराने में कई सारे लोगों का हाथ है. हालांकि इस मामले में शुरू से जगजीत सिंह चौहान, मास्टर तारा सिंह और धार्मिक गुरु जरनैल सिंह भिंडरवाले को खास माना गया था, लेकिन इसके बाद भी सिख समुदाय के कई लोगों ने इस आंदोलन का मोर्चा संभाला.

लेकिन वर्तमान समय में देखें तो अमृतपाल सिंह (Amritpal सिंह), जिसने खालिस्तानी समर्थकों की आवाज को बुलंद रखने के लिए “वारिस पंजाब दे” संगठन को दीप सिद्धू के बाद संभाला, जिसके तार पाकिस्तान और आईएसआईएस तक जुड़े थे, वह चर्चा में बना है. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने कुशल नीति के अंतर्गत अमृतपाल को गिरफ्तार कर लिया है. अमृतपाल ने भारत के गृह मंत्री को खालिस्तानियों के खिलाफ कार्यवाही करने पर इंदिरा गांधी की तरह अंजाम भुगतने की धमकी दी थी, लेकिन जेल जाने के बार भी अमृतपाल के समर्थक उसके सहयोग में जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं.

तो वहीं, दूसरी तरह खालिस्तानी समर्थकों को भारत में इस आंदोलन के लिए पाकिस्तान उकसाने की नापाक कोशिश शुरू से करता आ रहा है. इसके लिए समय-समय पर वह खालिस्तानी समर्थकों को मदद देता आया है. इसके अलावा, देश-विदेश में कई ऐसे छोटे बड़े संगठन (खालिस्तान कमांडो फोर्स, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स, नार्को आतंकवाद आदि) सक्रिय हैं, जो खालिस्तानी आंदोलन को दुबारा उकसाने की तैयारी में लगे हुए हैं.

खालिस्तानी समर्थक कैसे दे रहे इस आंदोलन को मजबूती?

पिछले कई सालों से देश-दुनिया में कई सारी ऐसी घटनाएं घटित हुईं, जिसमें खालिस्तानी समर्थकों द्वारा काफी उत्पात मचाया गया और खालिस्तान जिंदाबाद के नारे बुलंद किए गए.ऐसे में आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि उपरोक्त घटनाओं को अंजाम देकर खालिस्तानी समर्थक किस तरह से इस आंदोलन को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं.

  1. खालिस्तानी समर्थकों ने कनाडा के ओंटारियो में टाउन हॉल स्थित गांधी जी की मूर्ति को तोड़ दिया था. इसके बाद उन्होंने वहां भारत विरोधी नारे लगाए थे.

2. इससे पहले खालिस्तानी समर्थकों ने कनाडा के ब्रैम्प्टन गौरी शंकर मंदिर परिसर में भी खालिस्तान जिंदाबाद, हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे दीवारों पर लिख दिए थे. यही घटना कनाडा के मिसिसांगा स्थित राम मंदिर में भी दोहराई गई.

3. भारत में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) के बाद भी ब्रिटेन में खालिस्तानी समर्थकों का आंदोलन जारी रहा था. जिसकी शुरुआत अलगाववादी नेता जगजीत सिंह चौहान के समय पर ही हो गई थी. वहां जाकर उन्होंने खालिस्तान संगठन की स्थापना की थी, और जगजीत सिंह चौहान की मृत्यु के बाद आज भी ब्रिटेन में खालिस्तानी समर्थकों का आंदोलन जोरों पर है.

4. साल 2022 में कनाडा के रिचमंड हिल में स्थापित विष्णु मंदिर में भी खालिस्तानी समर्थकों द्वारा तोड़फोड़ की गई थी.

5. राहुल गांधी इन दिनों अमेरिका की यात्रा पर है, जहां भारतीयों से मुलाकात के दौरान उन्हें भी खालिस्तानी समर्थकों का विरोध झेलना पड़ा, इस दौरान अमेरिका में सक्रिय खालिस्तानी संगठन एसएफजे (SFJ) ने 22 जून को प्रधानमंत्री मोदी को भी खालिस्तानी झंडे दिखाने की बात कही है.

6. इसी साल मार्च के महीने में ब्रिटेन में खालिस्तानी समर्थकों ने भारतीय उच्चायोग में लगे भारत के राष्ट्रीय ध्वज को हटाकर खालिस्तानी झंडा फहराने का प्रयास किया, साथ ही भारत के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की. हालांकि इसके जवाब में भारतीय उच्चायोग के एक अधिकारी ने खालिस्तानियों के झंडे को उखाड़ फेंका. खालिस्तानी समर्थकों द्वारा दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे भारतीय झंडे को हटाने की भी धमकी दी जा चुकी है.

7. लंदन में खालिस्तानी समर्थकों द्वारा एक रेस्टोरेंट के मालिक जान से मारने की धमकियां दी गई, जिन्होंने खालिस्तानियों के विरोध में एक वीडियो जारी किया था. जिसके बाद उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई है.

8. खालिस्तानी समर्थकों द्वारा भारत के मेलबर्न लंदन, सेंट फ्रांसिस्को आदि विदेशों में स्थित उच्चायोग के ऊपर भी कई बार हमले किए जा चुके हैं.

9. खालिस्तानी समर्थक भगत सिंह को भी अपना विरोधी मानते हैं और भगत सिंह के खिलाफ भी बयानबाजी करने से बाज नहीं आते. उनका ऐसा मानना है कि भगत सिंह ने एक अमृतधारी सिख कॉन्स्टेबल चंन्नन सिंह को मारा था, जिस वजह से खालिस्तानी समर्थक उनका विरोध करते हैं.

10. इस तरह से भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, स्पेन और इटली तक खालिस्तानी समर्थकों का नेटवर्क सक्रिय है.

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कौन है खालिस्तानी और क्या है इनकी मांग?

साल 1929 में जब मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में लाहौर में अधिवेशन हुआ, उस दौरान पूर्ण स्वराज की मांग का 3 लोगों ने विरोध किया. जिनमें से एक थे मास्टर तारा सिंह, जिन्होंने सिखों के लिए अलग देश की मांग की थी. हालांकि जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी, तब उन्होंने भाषाओं के आधार सिखों को पंजाब राज्य तो दे दिया लेकिन पंजाब को अलग देश घोषित नहीं किया.

जिसके बाद खालिस्तान यानि खालसाओं के देश की मांग विकराल रूप लेने लगी और साल 1984 में इसी आंदोलन के दौरान भारत सरकार के आदेश पर भारतीय सैनिकों और खालिस्तानी समर्थकों के बीच काफी लड़ाई हुई और ये आंदोलन इतिहास में ऑपरेशन ब्लू स्टार के नाम से दर्ज हो गया. और अब तक खालिस्तानी समर्थकों का यही मत है कि अगर हिंदू राष्ट्र की मांग की जा सकती है तो खालिस्तान की क्यों नहीं? जिसको लेकर देश-दुनिया में घमासान जारी है.

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