थम गया शोर,अब बाबा करेंगे खेल!!

44 दिन बाद थमा राजस्थान का शोर, इन 5 फैक्टर से तय होगा भविष्य, राज बदलेगा या रिवाज?

राजस्थान चुनाव के महारथियों के शुरू हुए गुणा भाग, कोई पहुंचा बाबा के दरबार तो किसी ने खींची तलवार

ये रही चुनाव की वो बड़ी बातें, जिनकी चर्चाओं में कट रही राजस्थानियों की रातें, आप भी जान लीजिए चुनाव के सवाल

44 दिन बाद अब राजस्थान का चुनावी शोर थम चुका है. राज्य के 5 करोड़ 29 लाख 31 हजार 152 वोटर्स, 1875 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला तय करेंगे. मुख्य मुकाबला सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी और बीजेपी के बीच में है, लेकिन हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने चंद्रशेखर आजाद के साथ गठबंधन कर लड़ाई को रोचक बना दिया है। राजस्थान के 30 सालों के इतिहास के सहारे बीजेपी सत्ता पलटने की कोशिशों में जुटी है, तो वहीं कांग्रेस को गहलोत की गारंटी से रिवाज बदलने की आस है. चुनाव में मुख्य मुद्दा पेपर लीक, भ्रष्टाचार और विकास का रहा है. वहीं आखिरी वक्त में कांग्रेस के भीतर अशोक गहलोत और सचिन पायलट की जुगलबंदी ने भी कई नेताओं को चौंका दिया है। बात करें 1993 से लेकर अब तक के चुनावों की तो हर 5 साल में राजस्थान की सरकार बदल जाती है. 1993 में बीजेपी के भैरो सिंह शेखावत राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. 1998 में कांग्रेस की सरकार आ गई और अशोक गहलोत राज्य के मुख्यमंत्री बने. 2003 में अशोक गहलोत को भी हार का सामना करना पड़ा और वसुंधरा राजे को राज्य की कमान मिली है. 2008 में वसुंधरा भी बीजेपी को सत्ता में वापिस नहीं ला पाई थी. जिसके बाद अशोक गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए. 2013 में वसुंधरा ने फिर से राजस्थान का रिवाज कायम रखा. उनके नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में आई, लेकिन 2018 में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. 2018 में अशोक गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए. बीजेपी इस बार रिवाज के भरोसे है. पार्टी को उम्मीद है कि राजस्थान की जनता इस बार रिवाज कायम रखेगी. पार्टी ने इसलिए राजस्थान में मुख्यमंत्री का चेहरा भी घोषित नहीं किया है. बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है.
ओल्ड पेंशन स्कीम भी राजस्थान चुनाव में एक अहम मुद्दा माना जा रहा है. राज्य में 7.7 लाख सरकारी कर्मचारी हैं और साढ़े तीन लाख पेंशनभोगी हैं. कांग्रेस या बीजेपी, किसकी सरकार बनेगी? इस सवाल का जवाब दोनों पार्टियों के बागी उम्मीदवारों पर भी टिका हुआ है. इस चुनाव में कई कद्दावर नेता बागी बनकर चुनाव लड़े हैं. इनमें कांग्रेस और बीजेपी दोनों के नेता शामिल हैं. बात करें 2018 के चुनाव की तो अशोक गहलोत की सत्ता मजबूत करने में निर्दलीय विधायकों ने अहम भूमिका निभाई थी. इस बार के करीबी मुकाबले में अगर ज्यादा से ज्यादा बागी चुनाव जीतते हैं, तो सियासी खेल कुछ और ही हो सकता है। वहीं बात करें अन्य छोटे दलों की तो इस बार बीएसपी और बीएपी अलग-अलग तो आरएलपी आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी है. अगर इन चारों दलों ने 10 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल कर लिए, तो कई सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस का गणित बिगड सकता है।