Vat Savitri Vrat katha in hindi: महाभारत के अनुसार, अश्वपति नाम के राजा भद्र देश पर शासन करते थे. उन्हें कोई संतान नहीं था. अनेक व्रत-उपवास करने के बाद माता सावित्री उन पर प्रसन्न हुई और उन्हें एक तेजस्वी कन्या होने का वरदान दिया. बालिका के जन्म पर राजा अश्वपति ने उसका नाम सावित्री रखा.
विवाह योग्य होने पर राजा उसके लिए वर तलाशने भेजा. एक दिन जब सावित्री किसी कार्य से जंगल में गई तो वहां उसे एक सुंदर युवक नजर आया. उस युवक पर मोहित होकर सावित्री ने उसे अपना पति मान लिया. यह बात जब राजा अश्वपति को पता चली तो उन्होंने उस युवक के बारे में अधिक जानना चाहा.
वह युवक साल्व देश के राजा द्युमत्सेन का पुत्र सत्यवान था. दुश्मनों द्वारा राज्य छीन लेने की वजह से वह जंगल में अपने माता-पिता साथ रहता था. एक दिन नारद मुनि राजा अश्वपति के पास आए और उन्होंने बताया कि सत्यवान धर्मात्मा है, लेकिन एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी.
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यह बात जानकर राजा अश्वपति चिंतित हो गए और उन्होंने सावित्री से कहा कि वो कोई दूसरा वर पसंद कर लें. लेकिन सावित्री नहीं मानी. सावित्री का हठ देखकर राजा अश्वपति ने उसे सारी बात सच-सच बता दी. इसके बाद भी सावित्री सत्यवान से ही विवाह करने पर अडिग रही.
राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया। सावित्री अंधे सास-ससुर और निर्धन पति की सेवा करने लगी. जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया तो नारद मुनि ने इसके बारे में पहले ही सावित्री को बता दिया. उस दिन सत्यवान के साथ सावित्री भी जंगल में लकड़ियां काटने गई.
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लकड़ियां काटते-काटते अचानक सत्यवान के सिरमें तेज दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गया. तभी यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण निकालकर ले जाने लगे. सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी. यमराज ने सावित्री को देखकर उन्हें लौट जाने को कहा, लेकिन वह ना मानी.
सावित्री लगातार यमराज के पीछे चलने लगी. इस दौरान यमराज ने सावित्री को कई वरदान भी दिए और अंत में सावित्री की जिद से हारकर उन्हें सत्यवान के प्राण भी छोड़ने पड़े. इस प्रकार एक पतिव्रता स्त्री यमराज से अपने पति के प्राण वापस ले आई.